गलतियों से सबक क्यों नहीं ले रही कांग्रेस? ये गलती उसकी उम्मीदों पर पानी फेर देगी!
अब पिछली नहीं, बगल की सीट पर बैठ बिहार में साथ चलेगी कांग्रेस, राहुल- तेजस्वी की यात्रा से मिला साफ संदेश !
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17 अगस्त से सासाराम से शुरू हुई राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 'वोटर अधिकार यात्रा' में दोनों नेता चुनाव आयोग और BJP पर वोट चोरी का आरोप लगा रहे हैं। यह यात्रा INDIA गठबंधन की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें कांग्रेस अब RJD की 'छोटी साझेदार' वाली छवि तोड़ने की कोशिश में है। 2020 में 70 सीटों पर केवल 19 जीतने वाली कांग्रेस इस बार 50 जिताऊ सीटों की मांग कर रही है। राहुल की अगुआई और बिहार कांग्रेस में बदलाव से संकेत मिलता है कि पार्टी अब बराबरी की हिस्सेदारी चाहती है।
राहुल-तेजस्वी की वोटर अधिकार यात्रा: कांग्रेस का बिहार में नया दांव, RJD से बराबरी की जंग. Picture Courtesy: Tejashwi Yadav/ X
बिहार में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव दोनों यात्रा पर हैं. 17 अगस्त से सासाराम से शुरू हुई यात्रा में चुनाव आयोग पर वोट चोरी करने का आरोप लगा रहे हैं. इनके निशाने पर बीजेपी भी है. चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को निशाना बनाने के बहाने यात्रा के जरिए दोनों नेता बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच ऊर्जा का संचार भी कर रहे हैं. यह इंडिया गठबंधन की रणनीति का हिस्सा है. लेकिन, इस यात्रा से ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस इस बार बैकफुट पर रहने वाली नहीं है. पिछले तीन दशक के करीब हो गए कांग्रेस आरजेडी की पिछलग्गू बनकर रह गई है.
लालू प्रसाद यादव ने अपनी शर्तों और जरूरतों के हिसाब से कांग्रेस का इस्तेमाल भर किया है. लेकिन राहुल गांधी की अगुआई में कांग्रेस अब केवल नॉन स्ट्राइकर एंड पर खड़ी रहकर आरजेडी की बैटिंग देखते नहीं रहने वाली. आरजेडी से बेहतर कोऑर्डिनेशन और राहुल- तेजस्वी की जोड़ी के बीच केमिस्ट्री के दम पर इस बार कांग्रेस अपना बेहतर राजनीतिक भविष्य तलाश रही है. यही वजह है कि अब तक इस पूरी यात्रा में कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी भी बिहार में आरजेडी के छोटे पार्टनर होने के बावजूद आरजेडी की बी टीम के तौर पर अपनी पहचान को तोड़ने में लगे हैं.
इसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी, जब राहुल गांधी के करीबी कृष्णा अलावरू को बिहार कांग्रेस का प्रभारी बना दिया गया था, जिसके बाद बिहार में लालू यादव के करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह की बिहार कांग्रेस अध्यक्ष पद से छुट्टी कर दी गई थी. इस बदलाव में संकेत साफ था कि अब आरजेडी से चर्चा बराबरी पर होगी और हिस्सेदारी भी सहमति से , न कि आरजेडी की शर्तों पर.
सीट शेयरिंग को लेकर इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों में बातचीत चल भी रही है.अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा के लिए कमेटी भी बना दी गई है, लेकिन सीट बंटवारे पर अब तक सहमति नहीं हो पाने और गठबंधन में सीटों की संख्या की घोषणा नहीं होने के कारण इसका ऐलान नहीं हो पाया है. लिहाजा कांग्रेस भी अभी भी अपने पत्ते को बंद रखना चाहती है और तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर हामी अभी नहीं भरना चाहती है. उसे इंतजार है सीट शेयरिंग के फार्मूले के ऐलान का, इसके बाद तेजस्वी यादव के नाम पर वह अपनी सहमति दे देगी. 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़कर महज 19 सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी और सरकार नहीं बन पाने के लिए आरजेडी ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस के खराब प्रदर्शन और कम स्ट्राइक रेट को जिम्मेदार ठहराया था.
यही वजह है कि इस बार सीटों की संख्या कम करने पर आरजेडी जोर दे रही है, लेकिन कांग्रेस का अपना तर्क है. कांग्रेस का कहना है हमें 70 में अधिकांश वही सीटें मिली जो एनडीए की मजबूत सीट मानी जाती हैं. यानी उसे कमजोर सीटें दी गई.
सूत्र बताते हैं कि इस बार कांग्रेस कम सीटों पर, लगभग 50 के आस- पास सीटों पर सहमत हो सकती है. लेकिन जिताऊ सीटों पर वह अपना दावा कर रही है. इसीलिए माना जा रहा है कि यात्रा में शुरुआत में तेजस्वी यादव भले ही ड्राइविंग सीट पर बैठे दिख रहे हों,लेकिन राहुल गांधी बगल में ही बैठकर चलना चाहते हैं, पीछे की सीट पर बैठकर तेजस्वी को ड्राइविंग करते देखना नहीं चाहते. कांग्रेस की बिहार में एस आई आर के मुद्दे पर रणनीति और राहुल गांधी की सक्रियता इसी ओर इशारा करती है.