जेडीयू में अरुण कुमार की एंट्री पर ग्रहण! घर वापसी से पहले किसने किया खेल?

जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार की जेडीयू में शामिल होने की योजना अचानक रद्द हो गई। पार्टी की ओर से अपरिहार्य कारण बताया गया, लेकिन सूत्रों का कहना है कि जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता के विरोध ने उनकी एंट्री पर रोक लगा दी। अरुण कुमार और इस नेता के बीच पुरानी अदावत इस फैसले पर भारी पड़ गई। बिहार की प्रभावशाली भूमिहार जाति से आने वाले अरुण कुमार की मगध क्षेत्र में अच्छी-खासी लोकप्रियता है। अब नीतीश कुमार को ही उनकी वापसी का फैसला करना होगा।

By : Bihar Talks | Posted On : 05-Sep-2025

नीतीश कुमार के सामने पुराने दोस्त की एंट्री पर संकट. Photo Credit - Arun Kumar/X

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जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार का जेडीयू में शामिल होने वाला कार्यक्रम रद्द हो गया. जेडीयू की तरफ से जारी प्रेस रिलीज में अपरिहार्य कारण बताया गया. कई तरह के कयास लगाए जाने लगे. अटकलें लगाई जाने लगी कि एनडीए के आज बिहार बंद के चलते कार्यक्रम रद्द हुआ है.

लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और बताई जा रही है. कहा जा रहा है कि जेडीयू के भीतर से उठ रहे विरोध के एक मजबूत स्वर ने उनकी एंट्री पर रोक लगा दी है. एक दिन पहले अरुण कुमार की जेडीयू में वापसी को लेकर सब कुछ तय हो गया था. फिर रातों रात क्या हुआ ? सूत्रों के मुताबिक, जेडीयू के वरिष्ठ नेता के साथ अरुण कुमार की अदावत पुरानी है. वह अदावत उन पर भारी पड़ गई.

सूत्रों के मुताबिक, अपनी पार्टी के इस बड़े नेता के विरोध को देखते हुए बाकी नेताओं ने उनसे नाराजगी नहीं मोल लेना ही उचित समझा और यूं ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. आने वाले दिनों में पूर्व सांसद की जेडीयू में एंट्री होगी या नहीं होगी ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन, अभी विधानसभा चुनाव से पहले उनकी राहों में कांटे दिख रहे हैं. अब फैसला नीतीश कुमार को ही करना होगा.

बिहार की प्रभावशाली मजबूत भूमिहार जाति से आने वाले अरुण कुमार न केवल भूमिहारों के बल्कि सर्वसमाज के एक नेता के तौर पर अपनी पहचान रखते हैं. जहानाबाद जिले से आते हैं लेकिन, पूरे बिहार में इनका प्रभाव है. फिर भी, राजनीति में अपनी क्षमता के मुताबिक, इन्हें वो मुकाम नहीं हासिल हो सका,जिसके वो हकदार हैं. शायद उनकी मुखरता और साफगोई उन पर ही भारी पड़ जाती है. मगध क्षेत्र के जहानाबाद, गया, अरवल और नवादा में अरुण कुमार के समर्थकों की तादाद अच्छी खासी है. जहानाबाद से दो बार वो सांसद भी रहे हैं.

मगध विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले अरुण कुमार राजनीति में प्रवेश से पहले शिक्षा और सामाजिक कार्यों से भी जुड़े रहे हैं. कहा जाता है कि अपने विद्यार्थी जीवन काल और सियासत के शुरुआती दौर में गरीबों की आवाज बनकर उभरने वाले अरुण कुमार लेफ्ट माइंडेड थे.

1990 में जनता दल से बेला से चुनाव लड़ना भी चाहते थे लेकिन, उन्हें टिकट नहीं मिला. फिर 1993 में निर्दलीय mlc बन गए. Mlc रहते हुए उन्होंने समता पार्टी ज्वाइन कर ली. जॉर्ज फर्नांडिस के बेहद करीबी बन गए. उन्हें जॉर्ज का ही शिष्य माना जाता है.

इस दौरान वे 1998 में समता पार्टी से लोकसभा चुनाव जहानाबाद से लड़े लेकिन आरजेडी के सुरेंद्र प्रसाद यादव से हार गए. लेकिन, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद हुए 1999 के मध्यावधि चुनाव में जहानाबाद से समता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत गए.

1999 से 2004 तक सांसद रहने के बाद अरुण कुमार अगले चुनाव में आरजेडी के गणेश यादव से हार गए. लेकिन, 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार की अगुआई में एनडीए सरकार बनवाने में बड़ी भूमिका निभाई. लेकिन, सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार के साथ उनकी तनातनी हुई और उन्होंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया.

इसके बाद वो रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी होते हुए 2009 में कांग्रेस के टिकट पर जहानाबाद से चुनाव लड़े लेकिन, उन्हें नीतीश कुमार की पार्टी से चुनाव लड़ रहे जगदीश शर्मा से हार गए. इस बीच जेडीयू में फिर से उनकी एंट्री हुईएकिन यह दोस्ती ज्यादा वक्त नहीं रह पाई और फिर वे अलग हो गए.आखिरकार, 2014 में मोदी लहर में एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनकर उन्हें जहानाबाद में जीत मिली. उस वक्त उपेंद्र कुशवाहा की अगुआई में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन हुआ. इस नई नवेली पार्टी को तीन सीटें मिली थी, तीनों पर जीत मिली. जिसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को केंद्र में मंत्री भी बनाया गया. लेकिन दोनों में अनबन शुरू हो गई और अरुण कुमार ने अलग राह पकड़ ली. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी दो फाड़ हो गई जिसे अरुण कुमार ने खुद गढ़ा था.

बाद में नीतीश कुमार की 2017 में एनडीए में वापसी के विरोध में अरुण कुमार ने अलग राह पकड़ ली. 2019 का चुनाव जहानाबाद से निर्दलीय लड़ कर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इन्होंने यशवंत सिन्हा के साथ भारतीय सब लोग पार्टी की स्थापना की. इस पार्टी ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत कहीं भी नहीं मिल सकी. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने

जनवरी 2022 में अपनी पार्टी का लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) में विलय कर दिया. चिराग पासवान की अगुआई वाली पार्टी में लगभग दो सालों तक तक जुड़े रहने के बाद जहानाबाद सीट उनके खाते में नहीं आई और उन्होंने जहानाबाद से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. चुनाव में हार के बाद भी वे जनता से जुड़े रहे हैं.

अब 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले जेडीयू में शामिल होने की तैयारी चल रही थी. सितंबर 2025 में जेडीयू में शामिल होने की योजना बनी भी थी, लेकिन,नीतीश कुमार के पुराने दोस्त अरुण कुमार की जेडीयू में शामिल होने पर लगता है फिलहाल ग्रहण लग गया है. अब इस ग्रहण को काटने की हैसियत और ताकत सिर्फ पुराने दोस्त नीतीश कुमार में ही है.

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