राहुल गांधी की बिहार यात्रा का पटना में समापन. Photo Credit - Rahul Gandhi/X
राहुल गांधी की यात्रा का समापन पटना में हुआ लेकिन, समापन के वक्त भी राहुल गांधी ने एक बार फिर अपने बयान से सनसनी फैलाने की कोशिश की. कभी अपने बयानों से भूचाल लाने और एटम बम फोड़ने की बात करने वाले कांग्रेस के युवराज ने इस बार पाटलिपुत्र की धरती से हाइड्रोजन बम फोड़ने का ऐलान कर दिया. यूं तो अदालती आदेश के बावजूद देश भर में दीपावली के मौके पर बम - पटाखे फूटते हैं. लेकिन, इस बार दीपावाली के वक्त बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाइड्रोजन बम फोड़ने की बात की है. ये अलग बात है कि जगह और तारीख नहीं बताया है. अपनी यात्रा से राहुल उत्साहित और आत्मसंतुष्ट नजर आ रहे हैं. बिहार में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. इस लिहाज से कम से कम अपने कार्यकर्ताओं में नई जान फूंककर कांग्रेस की बार्गेनिंग की क्षमता को बढ़ा दिया है. बहुत ही समझदारी से तेजस्वी यादव के साथ यात्रा निकालकर राहुल गांधी ने एक परिपक्व पॉलिटिशियन बनने की तरफ कदम जरूर बढ़ाया है लेकिन तेजस्वी यादव के नाम पर सीट शेयरिंग से पहले मुहर ना लगाकर दबाव की राजनीति का बेहतर नमूना पेश किया है. अब यात्रा का विश्लेषण होता रहेगा और कितना फायदा हुआ इसका भी अंदाजा जल्द लग जाएगा, लेकिन, इस यात्रा पर चर्चा तो सब कर रहे हैं.
वोट चोर गद्दी छोड़ जैसे नारे के दम पर बीजेपी की केंद्र की सरकार और दूसरे राज्यों की सरकारों के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की गई. आइए सिलसिलेवार ढंग से जानते हैं कि इस यात्रा का मकसद, इसका एजेंडा और इसका पूरा सफर कैसा रहा.
सबसे पहले एजेंडे पर बात करें तो इस यात्रा में मतदाता सूचियों में कथित हेर फेर और वोट चोरी के खिलाफ विरोध जताया गया. संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की बात कर बिहार के दलित, पिछड़े, शोषित, अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को साधने की कोशिश की गई.
17 अगस्त से सासाराम से यात्रा की शुरुआत हुई, जिसका समापन राजधानी पटना में एक सितंबर को हुआ. इस दौरान विपक्षी इंडिया गठबंधन, जिसे बिहार में महागठबंधन भी कहते हैं, ने अपनी एकजुटता दिखाने की कोशिश की. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के अलावा इस मंच पर अखिलेश यादव से लेकर हेमंत सोरेन तक, एम के स्टालिन से लेकर रेवंत रेड्डी तक पहुंचे. बिहार और उत्तर भारतीयों को लेकर अपने दिए बयान को लेकर दक्षिण भारत के दो बड़े राज्यों के दो मुख्यमंत्री विवादों में रहे हैं, लेकिन, इसकी परवाह किए बगैर राहुल गांधी ने उन्हें अपनी यात्रा में बुलाया भी और मंच पर जगह भी दी. सीपीआई-एमएल के दीपांकर भट्टाचार्य और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी भी हर वक्त राहुल- तेजस्वी के साथ दिखे. पिछली बार मंच पर जगह नहीं मिलने से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव काफी आहत थे, लेकिन इस बार उन्हें बोलने का मौका भी मिल गया. और जब पप्पू बोले तो इस बार तेजस्वी यादव की तारीफ भी कर दिए. भले ही यह राहुल गांधी के प्रभाव में आकर दिया बयान हो लेकिन, निर्दलीय सांसद के लिए इस गठबंधन के अलावा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं दिख रहा. लिहाजा मन मसोसकर और प्रभारी अलावरू को कोसकर भी इसी पाले में रहना पड़ रहा है, जहां एनडीए के खिलाफ मोर्चा बन रहा है. पप्पू यादव को मौका मिला तो पप्पू यादव ने दावा किया कि,बिहार ने नई करवट ली है,जिसमें गरीबों और युवाओं की बड़ी भागीदारी देखी गई, जो सीमांचल क्षेत्र में विपक्ष को मजबूत कर सकती है. पप्पू यादव और तेजस्वी यादव का साथ आना गठबंधन के हिसाब से एक बेहतर संदेश था.
सबसे पहले दो दिन 17 और 18 अगस्त को राहुल- तेजस्वी की यात्रा रोहतास और औरंगाबाद में हुई. इसकी शुरुआत 17 अगस्त को सासाराम से हुई,फिर रोहतास, औरंगाबाद में यात्रा पहुंची.
19 अगस्त को नवादा और गया में यात्रा हुई.
20 अगस्त को ब्रेक डे था
21-22 अगस्त को शेखपुरा, मुंगेर, भागलपुर और जमुई में यात्रा हुई .
23-24 अगस्त को पूर्णिया, अररिया और कटिहार से होकर यात्रा गुजरी.
25 अगस्त: ब्रेक डे था
26-27 अगस्त को यात्रा सुपौल, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी और सीतामढ़ी से होकर गुजरी
28-29 अगस्त को यात्रा सीतामढ़ी, पश्चिम चंपारण, सीवान और गोपालगंज से होकर गुजरी
30 अगस्त को सारण और भोजपुर में यात्रा हुई
1 सितंबर को राजधानी पटना के गांधी मैदान से अंबेडकर पार्क तक मार्च निकला.